यह बचपन भी ना, कितना कुछ सिखा देता है!
हंसना, रोना, जीतना, हारना; लेकिन बाढ़ती उम्र के साथ खो सा जाता है यह बचपन|
कब हमारी चाल – ढाल , रंग- रूप शरीर का हर अंग किसी नए बदलाव में ढल सा जाता है| पता भी नहीं चलता हैं ना?
लेकिन मुझे पता है, ६ मई २०१७|
माँ रसोई के काम में व्यस्त थी| उन्हें अचानक एक चीख सुनाई दी| वह घबराते हुए कैमरे में गयीं जहा से चीख की आवाज़ आई थी| उन्होंने धीरे से गुसलखाने का दरवाज़ा खटखटाया और पूछा,

“क्या हुआ बीटा? तुम ठीक हो ना?”
जवाब में उन्हे बस सिसकिया सुनाई दी| वह आवाज़ मेरी थी|
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था , यह खून क्यों बह रहा था? मुझे चोट कब लगी?
तब माँ ने मुझे बताया कि मुझे मेरा पहला मासिक धर्म (पीरियड) हुआ है|

वह चुलबुली सी, खिलखिलाती हुई शरारती लड़की जो बस खेलने कूदने में लगी रहती थी वह अब कदम कदम पर सोचने लगी थी| एक बार नहीं बार बार, हर महीने| मन में जो हज़ारों सवाल थे माँ मुझे शान्ति से हर बात समझती| फिर भी जिज्ञासा ख़त्म नहीं होती| मानो मेरी छोटी सी दुनिया में तूफ़ान सा आ गया हो| वह पेट दर्द कमर में अकड़न, चिड़चिड़ाहट, गुस्सा में कभी नहीं भुला सकती| मानो अचानक मेरे ऊपर दर्जनों बंदिशें लग गयी हों और आइना तोह मेरा दुश्मन सा बन गया हो|
में रोज़ अपनी परछाई में कुछ अजीब और नया देखती थी. लेकिन जो कहो हमारे शुरुवाती दिन काफी संघर्ष पूर्ण , साथ ही साथ तनाव पूर्ण थे| मेरे मानसिक स्वास्थ पर काफी नकारात्मक असर पढ़ रहा था| लेकिन फिर सब समय के साथ साथ आसान होने लगा , और मासिक धर्म से साथ मेरा करवान आगे बढ़ता चला गया|

एक आंकड़े के अनुसार, आज भी ५०% से अधिक लड़किया विद्यालय नहीं जाती है युवतियाँ आज भी इस विषय पर खुलकर बात करने से कतराती हैं | वह तोह यह तक कहने से बचती है की उन्हें मासिक धर्म होता है| आधे से ज़्यादा लोगो को लगता है की मासिक धर्म से गुज़ारना कोई अपराध है, और उससे बड़ा अपराध उसके बारे में चर्चा करना है| मगर यह उनकी गलती नहीं है क्योकि यह सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही परंपरा है, सोच है, और जो अबतक विकसित नहीं हुई है|

मौजूदा आंकड़े इस ओर भी इशारा कर रहे हैं कि मासिक धर्म के प्रति अब लोगो की सोच समय के साथ बदलने लगी है|भले यह व्यापक स्तर पर ना हो,लेकिन लड़कियां अब इन मुश्किल दिनों के बारे में अपने विद्यालय में दोस्तों व शिक्षिकाओं साथ इस विषय पर खुलकर बातें करने लगी हैं| यह एक सकारात्मक संकेत है। वेबसइट जैसे – फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि इस बदलाव का ज्वलंत उदाहरण हैं। विशेषज्ञों की राय में यह एक खूबसूरत और सराहनीय प्रयास है|

अब वक्त आ गया है अपनी चुप्पी तोड़ने का।
आज के बदलते परिवेश में लड़कियां घर से बाहर निकल रही हैं, कभी पढ़ने तो कभी नौकरी करने के लिए| ऐसे में अगर वो पीरियड को लेकर संकोच में रहेंगी तो वक्त के साथ कैसे चल पाएंगी? विशेषज्ञों का मानना है कि मासिक धर्म के बारे में बताने वाली सबसे अच्छी जगह है स्कूल, जहां इस विषय से यौन शिक्षा और स्वच्छता को जोड़कर चर्चा – परिचर्चा की जा सकती है तथा इससे जुड़ी समस्याओं और समाधानों की जानकारी मिल सकती है। लड़कियों का मानना है कि पहले उनकी माता ही मासिक धर्म के प्रति अपनी सोच बदलें|
फिर अपनी बेटियों को समझाएं,तैयार करें, व जागरूक करें, ताकि उनकी बेटियों को किसी के सामने शर्मिंदा ना होना पड़े और वो आगे जाकर एक आत्मनिर्भर,आत्मविश्वासी और मजबूत बनें।

टीवी, इंटरनेट पर आजकल हर तरह की सामग्री मौजूद है जिससे लोगों की सोच मासिक धर्म के प्रति बदली है लेकिन अब भी बहुत लोग जागरूक नहीं हैं।लोगों को समझना होगा कि मासिक धर्म कोई जुर्म नहीं है बल्कि प्रकृति की तरफ से दिया गया वरदान है,आशीर्वाद है जिससे हम पुरुषों से अलग हैं; सृष्टिकर्ता है जननी हैं। अभी शरद ऋतु आ गई है,ठंड भी बढ़ रही है।

बच्चों को तो पता नहीं होता है कि ठंड में गरम कपड़े पहने जाते हैं, जब तक कि बताया ना जाए।
तो उनके माता – पिता उनके गर्म कपड़े निकालकर उन्हें देते हैं और कहते हैं – “बेटा अब शरद ऋतु आ रही है,ठंड बढ़ेगी इन्हें पहन लेना।”
इसी प्रकार अगर हमारे माता – पिता भी हमें कहें – “बिटिया!अब तू बड़ी ही रही है। अब तेरे शरीर में कुछ प्राकृतिक बदलाव होने वाले हैं और उसे मासिक धर्म कहते हैं।”

अगर हमारी माता मासिक धर्म के बारे में पहले बता देती,हमारी टीचर हमें समझा देती,हम हमारे मासिक धर्म को एक दुश्मन एक मुश्किल की तरह न देखते|पर दुर्भाग्यवश जागरूकता की कमी,जानकारी के अभाव में हमारे शुरुआती समय काफी कठिन थे, हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है साथ ही साथ हमारी मनोस्थिति भी बिगड़ जाती है इसलिए मासिक धर्म पर जागरूकता की जरूरत थी और रहेगी| भारत में अधिकतर लोग गांव में रहते हैं जहां धर्म के दौरान स्वच्छता अनदेखी की जाती है| इससे लड़कियों के स्वास्थ्य और मानसिक अवस्था पे असर होता है|
अंत में बस इतना कहना चाहूंगी कि जागरूकता और जानकारी रहेगी तो लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान मानसिक अस्वस्थता से नहीं गुजरना पड़ेगा और ये पड़ाव भी वो सहज रूप से, हसीं- खुशी, खेलते – कूदते पार करते रहेंगी, वो भी एक सकारात्मक सोच और ऊर्जा के साथ, जिससे हम एक विकसित और समृद्ध देश का निर्माण कर सकते हैं। धन्यवाद। जय हिन्द, जय भारत।

लेखिका: ऐश्वर्या सिंह

ऐश्वर्या रांची में रहती हैं और डी.ए.वी. पब्लिक स्कूल गांधीनगर, रांची, झारखंड की नवमी कक्षा की छात्रा हैं । ऐश्वर्या मासिक धर्म जैसे व्यक्तिगत मुद्दों को एक सामाजिक मुद्दा बना कर लोगों को जागरूक करना चाहती हैं जिससे एक सशक्त भारत का निर्माण हो सकें। उसे अलग अलग तरह की किताबे पढ़ना और कविताएं लिखना अच्छा लगता है।

संपादन: टीम मेनस्ट्रुपीडिया

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